छोटों को भी दें मान !

हम सभी ने बचपन में अपने माता पिता और शिक्षकों से सीखा है कि अपने से बड़े लोगों का सम्मान करना चाहिए. भारतीय संस्कृति में अपने से उम्र या ओहदे में बड़े वयक्ति को एक उच्च स्थान देने व उनका सम्मान करने को ख़ास महत्व दिया गया है. हमारे वैदिक और पौराणिक साहित्य में इसके अनेक उदहारण हैं. चाहे वह हनुमान की राम भक्ति हो या अर्जुन का श्री कृष्ण पर अपार विश्वास या गुरुकुल प्रथा में गुरु के कहने पर बिना प्रश्न करे बड़ी से बड़ी चुनौतियों का सामना करने वाले शिष्य, हम सभी इन प्रभावी कहानियों को सुनके बड़े हुए हैं.

परन्तु क्या कभी आपने ये सोचा है कि हर व्यक्ति को सम्मान का सामान हक़ है. व्यक्ति चाहे किसी भी जाति, लिंग या उम्र का हो, उसे सम्मान प्राप्त करने का पूरा हक़ है. यह कहना गलत नहीं होगा कि अपने बड़ों के अलावा, हमें अपने छोटों को भी सम्मान देना चाहिए. वास्तव में सम्मान उम्र पर निर्भर नहीं होता. हर एक व्यक्ति को एक दुसरे की सोच, भावनाओं और व्यवहार का सम्मान करना चाहिए. ऐसा करने पर आप अपने से छोटों के लिए एक बेहतर उदहारण पेश करेंगे और स्वयं भी उचित आदर पाएंगे.

ये सब मानते हुए भी हमें अपनी सोच, आदत या अहंकार के कारण छोटों को सम्मान देने में परेशानी होती है. कुछ साधारण बातों का अनुसरण कर के हम ये परेशानी काम कर सकते हैं.

उचित सम्बोधन दें.

बच्चों या अपने से छोटी उम्र के व्यक्तियों को कभी ‘तू’ कहकर सम्बोधित न करें. उन्हें हमेशा ‘तुम’ या ‘आप’ कहकर बुलाएं. अपने कार्य स्थल पे, अपने सहकर्मियों व अपने आधीन कर्मचारियों के नाम के आगे ‘जी’ लगाकर सम्बोधित करें. महिलाएं भी घर में काम करने वाले सहायकों को ‘भैया’, ‘दीदी’, या नाम के आगे ‘जी’ लगाकर पुकारें. इसके अलावा छोटों से भी ऊंची आवाज़ में बात न करें. बात करते हुए ‘प्लीज’, ‘थैंक यू’ और ‘सॉरी’ जैसे शब्दों का यथोचित उपयोग करें. अपशब्दों से बचें व उचित शब्दों का चयन कर अपने बढ़प्पन की गरिमा बनाये रखें. जिस घर में बड़े सबको उचित सम्बोधन देंगे, वहाँ छोटे भी ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित होंगे.

बात ध्यानपूर्वक सुनें.

आज के आधुनिक युग में हर एक व्यक्ति व्यस्त है. अपनी व्यस्तता में हम न जाने कितनी महत्वपूर्ण बातों को अनदेखा कर देते हैं. माएं अक्सर अपने बच्चों कि बातें रसोई में खाना पकाते हुए सुनती हैं और पिता कम्प्युटर पे दफ्तर का काम निपटाते हुए. इस तरह हम केवल बात सुन ही सकते हैं, समझ नहीं सकते. बातों को समझने के लिए हमें अपना काम कुछ देर के लिए रोक कर, अपने से छोटों कि आँखों में देख कर, उनके हर एक हाव भाव पर ध्यान दे कर उनकी बातों को सुनना होगा. शायद वह बात हमारे लिए छोटी हो पर हमारे छोटों के लिए आवश्यक हो सकती है. छोटों की हर बात को सम्मानपूर्वक सुनना बड़ों की ज़िम्मेदारी है.

भावनाओं पे प्रश्न न करें.

हर एक व्यक्ति अलग अलग परिस्थितियों में अलग तरह के भावों को महसूस करता है. भावनाओं में कुछ सही या गलत नहीं होता. भावनाओं को किस ढंग से व्यक्त किया जाता है, ये ज़रूर सही या गलत हो सकता है. इसलिए आपसे छोटा कोई व्यक्ति यदि किसी भावना की अभिव्यक्ति करता है तो उसे सही गलत का पाठ पढ़ाने के बजाये उससे हमदर्दी रखें. खुद को उसकी जगह रखके समझें की उसने क्यों ऐसा महसूस किया होगा. इसके उपरान्त बड़े होने के नाते उन्हें सहायता करें कि कैसे वे किसी नकारात्मक भावना को भी सकारात्मक ढंग से अभिव्यक्त कर सकते हैं.

शारीरिक बल के प्रयोग से बचें.

किसी भी परिस्थिति में, अपने से छोटों पे हाथ न उठाएं. चाहे वह आपके बच्चे हों या सेवक, उन पर किसी भी तरह के शारीरिक बल का इस्तेमाल न करें. शारीरिक हिंसा सम्मान और इंसानियत के हर दायरे से परे है. किसी भी पढ़े लिखे व्यक्ति को ऐसा करना शोभा नहीं देता.

आभार व्यक्त करें.

प्रतिदिन हमारे आस पास उपस्थित लोग अनेक तरह से हमारी सहायता करते हैं. ज़्यादातर समय हम इसे उनका कर्तव्य मान कर उन्हें इन कार्यों के लिए धन्यवाद नहीं देते. एक सज्जन व्यक्ति की पहचान है की वो अपने से छोटों का सदेव आभार व्यक्त करे. ऐसा करने पर उसे भविष्य में न सिर्फ बेहतर सेवा प्राप्त होगी बल्कि छोटों की ओर से और सम्मान मिलेगा.

उपलब्धियों पे दें बधाई.

अपने से छोटों को उनकी हर छोटी बड़ी उपलब्धि पे बधाई देकर उनका उत्साह वर्धन करें. हर व्यक्ति अपने बड़ों की सराहना व प्यार चाहता है. यदि हम छोटी उपलब्धियों को अनदेखा करेंगे, तो हमारे छोटों को कभी नयी ऊचाईयां छूने का प्रोत्साहन नहीं मिलेगा. इस उत्साह वर्धन के बाद, किस तरह वह ये काम बेहतर कर सकते हैं ये उनसे पूछें और उन्हें अपने सुझाव भी दें. गलतियां गिनाने से बचें.

फैसलों में करें शामिल.

रोज़मर्रा के वह सभी निर्णय जो आपके अलावा आपसे छोटे व्यक्तियों के जीवन पर भी असर डालते हैं, उनके लिए अपने छोटों की भी राय लें. किसी व्यक्ति की बात को उसके उम्र, रिश्ते या ओहदे में छोटा होने के कारण अनसुना कर देना गलत है. हर व्यक्ति का अपना मत होता है. और किसी निर्णय से छोटे बड़े रूप में जुड़े सभी व्यक्तियों का मत जानना न्यायोचित है.

हस्तक्षेप से बचें.

बड़े होने के नाते अपने से छोटों के जीवन में रूचि लेना स्वाभाविक है. परन्तु अपनी सीमा समझना आवश्यक है. आप अपने सिद्धांत, मूल्य और नियम छोटों पे थोप नहीं सकते. यदि उन्हें आपके मार्गदर्शन की आवश्यकता होगी तो वो स्वयं आपसे उसके लिए अनुरोध करेंगे. अन्यथा जिस तरह आपने सही गलत निर्णय लेके अपना अनुभव अर्जित किया है, वह भी करेंगे. उनके व्यक्तित्व का, जीने के तरीके का, सम्मान करें. उन्हें अपना साथ और यथासंभव सहायता दें परन्तु उनके जीवन में हस्तक्षेप करने से बचें.

कथनी और करनी में अंतर न रखें.

हम सभी अपने जीवन में अनेक स्रोतों से बहुत सा ज्ञान अर्जित करते हैं. अपने से छोटों को ये ज्ञान देने की प्रबल इच्छा हम सभी को होती है. परन्तु मनोचिकित्सा ने यह साबित कर दिया है की बच्चे अपने माता पिता की बातों से ज़्यादा उनके व्यवहार को देख कर सीखते हैं. तो यदि आप अपने बच्चों को सिखाते हैं कि माता पिता को सम्मान दें, तो खुद भी अपने माता पिता का आदर करना न भूलें. इसके साथ ही, छोटों से किया हुआ हर वादा निभाएं. उन में अपने प्रति विश्वास बनाये रखें.

गलती को करें स्वीकार.

हम सभी इस सत्य से मूह नहीं फेर सकते की छोटों की ही तरह बड़े भी गलती करते हैं. यदि हम गलती करने पर अपने अहंकार या शरम के कारण माफ़ी न मांगे, तो हमारे छोटों को भी यही सीख मिलेगी. वह भी अपनी गलतियों पर पर्दा डालना और उन्हें सुधारने का प्रयास करना छोड़ देंगे. यह भी याद रखें कि गलती करने पर आप अपने से छोटे व्यक्ति के सामने शर्मिंदा नहीं होते. बल्कि उसे सहजता से स्वीकार करके और सुधार कर आप उन्हें मार्गदर्शित कर सकते हैं.

यदि आप इन सभी बातों का अपने व्यक्तिगत जीवन में अनुसरण करें तो आपके अपने छोटों से रिश्ते अत्यधिक मधुर और सहज हो जाएंगे. आपको देख के आपके आस पास के लोग भी यही व्यवहार सीखेंगे और अपने से छोटों के साथ ऐसे ही सम्मानपूर्वक ढंग से पेश आएंगे. तो सत्य ये खरा आज लें जान, उम्र को नहीं, अस्तित्व को दें मान!!

3 thoughts on “छोटों को भी दें मान !

  1. बहुत ही अच्छे और संक्षेप में सारे विचार आपने प्रस्तुत किये हैं. ऐसे ही लेख लिखा कीजिये. बहुत से लोगों का भला होगा.

  2. डाक्टर साहिबा, आपने सारी बातें नायाब लिखीं हैं, यह भी कभी बताइयेगा की बच्चों की गलत आदतें और गुस्सा कैसे ख़त्म की जाएँ..शाबाश है आपको..

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