विवाह के लिए मन से हों तैयार!

bride

ऐसा माना जाता है कि विवाह हर व्यक्ति के जीवन के सबसे खूबसूरत पलों में से एक है. यह सुखद अवसर व्यक्ति के जीवन में आम तौर पे एक ही बार आता है और इसके आने पे सब कुछ एक खूबसूरत सपने सा लगता है. ये बातें कुछ हद तक तो सही हैं पर केवल अधूरा सत्य दर्शाती हैं. मनोचिकित्सकों के अनुसार विवाह किसी व्यक्ति के जीवन की सबसे तनावपूर्ण घंटनाओं में गिना जाता है. ख़ास तौर पे भारतीय समाज में जिसमें विवाह के उपरान्त वर और कन्या के जीवन, तौर तरीकों और रिश्तों में अनेक चाहे अनचाहे बदलाव आ जाते हैं, विवाह तय होना ही व्यक्ति में घबराहट पैदा कर सकता है.

जो लड़का घर का राजकुमार था, मस्ती में बेफिक्र रहता था, घर पे क्या हो रहा है क्या नहीं, इस बात की कोई खबर नहीं थी, उसे अहनक बढ़प्पन और ज़िम्मेदारी का एहसास कराया जाता है. उसका हर निर्णय अचानक परिवार के लिए महत्वपूर्ण हो जाता है. जो लड़की माँ बाप की लाड़ली थी और सहेलियों, गानों या पढ़ाई में उलझी रहती थी, उस पर रसोई को संभालने और सबकी देख रेख का बोझ डाल दिया जाता है. उसे न जाने कितने रिश्तों की उम्मीदों पे खरा उतारना पड़ता है. ज़ाहिर सी बात है कि ये सभी बदलाव आसान नहीं होते. खासकर लड़कियों के लिए जिनका घर, परिवार, माहौल, आचरण, परिधान, बोल चाल सब बदल जाती है. विवाह उपरान्त जीवन को सुखमय बनाने के लिए व तनाव को काम करने के लिए कुछ साधारण बातों का अनुसरण करना आवशय्क है.

मानसिक रूप से भी रहें तैयार

विवाह से पहले माता पिता लड़की के साथ मिल के न जाने कितनी तैयारियां करते हैं. उसके कपडे, गहने, सौंदर्य प्रसाधन, इत्यादि, सभी उसके साथ ले जाने के लिए तैयार कर दिए जाते हैं. कमी रह जाती है तो बस एक चीज़ की- लड़की मन से सभी आने वाले बदलावों के लिए तैयार नहीं होती. ऐसे में लड़की को अपनी समझदार शादी-शुदा सहेलियों, बहनों, आदि से बात करनी चाहिए. उनसे उनके अनुभव जानने चाहिए कि विवाह के बाद उन्हें किन परिस्थितियों का सामने करना पड़ा और कैसे उन्होंने उनका मुक़ाबला किया. किन बातों ने या लोगों ने ऐसा करने में उनकी सहायता की, ये भी जानना आवशयक है. अपनी शादी शुदा सहेलियों के अनुभव जानने के अलावा आप वैवाहिक जीवन पे लिखी किताबों को भी पढ़ सकती हैं. ऐसा करने पर आपके नव जीवन का सफर शायद आपके लिए आसान नहीं तो भी परिचित तो ज़रूर हो जाएगा.

सभी रीति रिवाज़ लें जान

भारत एक ऐसा देश है जिसके अलग अलग प्रांतों-प्रदेशों में भांति भांति की विवाह प्रथाएं प्रचलित हैं. एक ही धर्म या जाति के परिवार भी अपने क्षेत्रानुसार अलग तरह की रीतियों का अनुसरण करते हैं.   समझदारी इसी में है कि आपके माता पिता या घर का कोई निकटतम सदस्य आपके ससुराल वालों से पहली ही बात चीत करके विस्तार से विवाह के दौरान और उसके बाद होने वाली सारी रस्मों को समझ लें. रस्मों के लिए आवश्यक सामग्री का भी इंतज़ाम पहले ही कर लिया जाए. इसके अलावा यदि कोई रस्म किसी भी कारण से कठिन या आपत्तिजनक लगती है तो ससुराल वालों को स्पष्ट शब्दों में इसके बारे में बताया जाना चाहिए.

सबकी पसंद नापसंद का हो पहले से ज्ञान

भारतीय परिवेश में वधु से सबकी बहुत अपेक्षाएं होती हैं. सभी ये चाहते हैं कि उनकी बहू सीधी, सुशील और सुन्दर हो. ऐसे में कुछ ज़रूरी विषयों से सम्बंधित ससुराल वालों की राय पहले ही समझ लेना लाभकारी है. ससुराल में किस तरह के परिधान अनुमोदित हैं, नाते रिश्तेदारों को किस तरह सम्बोधित किया जाता है, कौन से त्यौहार मनाये जाते हैं, खाने में सबकी क्या पसंद नापसंद है, इत्यादि बातों की जानकारी आगे चलकर बहुत से कामों को सहज और सरल बना सकती है.

खुद से भी कराएं परिचय

ये सच है कि शादी करके लड़की को पराये घर जाके उस घर के अनुरूप खुद को ढालना होता है. परन्तु हर व्यक्ति का अपना अस्तित्व होता है. कुछ हद तक तो हर व्यक्ति खुद को बदल सकता है, परन्तु पूरी तरह से अपने व्यक्तित्व के विपरीत जाना असंभव है. इसलिए ससुराल वालों को जानने जितना ही ज़रूरी है कि आप खुद से भी उनकी पहचान कराएं. उनके लिए ये जानना आवश्यक है कि आप शादी के बाद कहाँ रहना चाहती हैं, अपने व्यावसायिक जीवन से जुड़ी आपकी क्या महत्वाकांक्षाएं हैं, क्या घर के कोई ऐसे काम हैं जो आप नहीं जानती या उनके कोई ऐसे रीति रिवाज़ जिनसे आपकी ख़ास असहमति हो. ये सभी बातें यदि स्पष्ट रूप से आपके ससुराल वालों को बतायी जाएँ तो आगे चल कर आपके लिए ये परिवर्तन आसान होगा.

जीवन साथी के साथ वक़्त बिताएं

शादी चाहे अपनी पसंद के जीवन साथी के साथ करें या माता पिता की पसंद से, पति पत्नी का रिश्ता मज़बूत होना चाहिए. इस रिश्ते की नींव शादी के पहले ही पड़नी शुरू हो जाती है. दोनों लोग एक दूसरे से क्या सवाल करते हैं, एक दुसरे के माता पिता रिश्तेदारों को कितना प्यार व सम्मान देते हैं, इन सभी बातों का असर इस रिश्ते पे पड़ता है. इसलिए शादी तय होने पर परिवार से अनुमति लेकर अपने जीवन साथी को जानने के लिए उनके साथ खूब वक़्त बिताएं. कई बार एक साधारण सी मुलाक़ात भी हमें अपने साथी के विषय में कोई महत्वपूर्ण बात बता सकती है. शादी शुदा रिश्तों को लेकर आपके साथी का क्या रवैया है और आप दोनों के भविष्य के बारे में वो क्या सोचते हैं, ये भी जानना ज़रूरी है. ज़्यादा वक़्त साथ बिताके आप अपने रिश्ते की मधुरता का आनंद लेने के अलावा आपस में बेहतर ताल मेल बिठा सकते हैं ताकि आगे चल कर ये सम्बन्ध आपकी ताकत बने.

झूठ से बचें

कई बार परिवार शादी के वक़्त एक दूसरे से कोई ज़रूरी बात छिपा जाते हैं. यह झूठ कभी तो लड़के और लड़की की उम्र के विषय में बोला जाता है तो कभी उनकी किसी बिमारी या अपंगता के विषय में. वस्तुतः सभी यह झूठ रिश्तों को बचाने के लिए व यह मान के बोलते हैं की शायद किसी कड़वे सच से इन मधुर रिश्तों में कड़वाहट आ सकती है. पर हम सभी जानते हैं की झूठ की उम्र छोटी होती है. कभी न कभी सच बाहर आ ही जाता है. और ऐसा होने पर आपसी प्यार और विश्वास को आघात पहुँचता है. समझदारी इसी में है की शादी करते वक़्त दोनों परिवार अपनी सभी बातों को ईमानदारी से एक दूसरे से बताएं ताकि रिश्तों में झूठ व छल कपट के लिए कोई जगह न हो.

भिन्नता का करें सम्मान

कोई भी दो व्यक्ति या परिवार एक से नहीं होते. आपके जीवन साथी की पसंद, नापसंद, सोचने का तरीका, आदि आपसे भिन्न हो सकता है. इसका यह मतलब नहीं की वो गलत है. इसी तरह आपके ससुराल की आर्थिक स्तिथि, तौर तरीके, आदि आपके परिवार से अलग हो सकते हैं. यदि ये सभी चीज़ें पूरी तरह से एक दूसरे के प्रतिकूल न हों, तो भिन्नता के बावजूद आपस में सामंजस्य स्थापित किया जा सकता है. पर उसके लिए एक दूसरे की भावनाओं का सम्मान करना ज़रूरी है. बल्कि विवाह के बाद दोनों घरों की सोच व जीवन शैली में एक दूसरे से प्रभावित होकर अच्छे अंतर आने की संभावना है.

अपनों की लें राय

हमारे माता पिता, करीबी रिश्तेदार, सहेलियां, आदि कुछ ऐसे लोग हैं जो हमें बहुत अच्छे से जानते हैं. हम किस परिस्थिति में किस तरह से पेश आएंगे, ये भी उन्हें अच्छी तरह पता होता है. कई बार ये लोग हम से बेहतर अंदाजा लगा पाते हैं कि किसी स्थिति में हमें क्या मुश्किलें आ सकती हैं. विवाह से पहले इन सभी लोगों से राय लें. इनसे पूछें की इनके अनुसार आपको किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है. हो सकता है कि आपको गुस्सा ज़्यादा आता हो, या आप अत्यधिक संवेदनशील हों, या आप किसी की बात सुनना न पसंद करती हों, आपके करीबी लोग इन सभी कमियों से आपकी पहचान करा, इन पर काबू पाने कि लिए आपको प्रेरित कर सकते हैं.

विवाह उपरान्त जीवन में परिवर्तन स्वाभाविक है. इस सत्य को स्वीकार करने पर ही हम इस बदलाव में सहजता से ढल सकते हैं. यदि आप ऊपर कही गयी सभी बातों का अनुसरण करें तोवैवाहिक जीवन का शुरूआती दौर कल्पना सा खूबसूरत हो सकता है. फिर भी किसी कारणवश यदि खुद से ये करना संभव न हो, तो किसी मनोचिकित्सक से परामर्श लेने से न हिचकिचाएं. तो हर तरह से विवाह पूर्व अपनी तैयारी पूरी रखिये.  वैवाहिक जीवन में चाहें जो खुशियाँ अपार, विवाह कि लिए हों, मन से भी तैयार!

 

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